
वर्मीकम्पोस्टिंग
वर्मीकम्पोस्टिंग यानी केंचुओं की मदद से जैविक कचरे को पोषक खाद में बदलना। यह एक प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीका है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसलों की गुणवत्ता बेहतर होती है। यह विधि किसानों के लिए सस्ती और टिकाऊ है, जिससे वे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम कर सकते हैं। आइए, इसे सरल भाषा में समझते हैं।
"मिट्टी को स्वस्थ रखना, हमारे भविष्य को सुरक्षित रखना है।"
वर्मीकम्पोस्टिंग की प्रक्रिया
सामग्री का चयन
इस प्रक्रिया के लिए घर का जैविक कचरा, जैसे कि फल-सब्जियों के छिलके, सूखे पत्ते, चाय की पत्ती, अंडे के छिलके और गाय का गोबर इस्तेमाल किया जाता है। ध्यान रखें कि प्लास्टिक या केमिकल युक्त चीजें इसमें न डालें, क्योंकि वे केंचुओं और मिट्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

केंचुओं का चयन
हर केंचुआ वर्मीकम्पोस्टिंग के लिए उपयुक्त नहीं होता। इसके लिए "रेड विगलर" (Eisenia fetida) और "इंडियन ब्लू" (Perionyx excavatus) जैसे विशेष केंचुए सबसे अच्छे होते हैं। ये जैविक कचरे को जल्दी विघटित करके उसे खाद में बदलते हैं।

वर्मीकम्पोस्ट बेड तैयार करना
इसके लिए एक ट्रे, कंटेनर या गड्ढा तैयार करें। इसे हवादार और हल्की नमी वाला बनाना जरूरी है। सबसे पहले नीचे जैविक कचरे की परत बिछाएं, फिर केंचुए छोड़ें और ऊपर हल्की नमी बनाए रखने के लिए गीली घास या अखबार रखें।

विघटन की प्रक्रिया
केंचुए जैविक कचरे को खाते हैं और उसे पचाकर मल (कास्टिंग) के रूप में छोड़ते हैं। यह मल पोषक तत्वों से भरपूर होता है और मिट्टी के लिए प्राकृतिक खाद का काम करता है। इस प्रक्रिया के दौरान नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे पोषक तत्व मिट्टी में मिल जाते हैं, जिससे फसलें तेजी से बढ़ती हैं।

परिपक्व खाद प्राप्त करना
30-45 दिनों में कचरा पूरी तरह से खाद में बदल जाता है। अगर मिश्रण बहुत सूखा है, तो हल्का पानी छिड़कें और अगर ज्यादा गीला है, तो उसे थोड़ी देर धूप में रखें। जब खाद गहरे भूरे रंग की और बिना किसी गंध के हो जाती है, तो समझिए कि यह तैयार है।

वर्मीकम्पोस्ट की छंटाई और उपयोग
जब खाद तैयार हो जाती है, तो उसे छानकर केंचुओं को अलग कर लिया जाता है, ताकि वे दोबारा इस्तेमाल किए जा सकें। तैयार खाद को खेतों, बगीचों और गमलों में मिलाया जाता है, जिससे मिट्टी उपजाऊ बनती है और फसलों को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं।